संपादकीय-एडवोकेट हरेश पंवार
आज देश का युवा अजीब और विचित्र स्थिति में जी रहा है। एक ओर कांवड़ लाने वाले युवाओं का स्वागत फूल-मालाओं और इत्र वर्षा से होता है, तो दूसरी ओर रोजगार मांगने वाले और परीक्षा देने वाले युवाओं पर पुलिस की लाठियाँ बरसती हैं। यह कैसा अन्याय है कि जो अपनी मेहनत, अपने सपनों और अपनी योग्यता के दम पर राष्ट्र को मजबूत करना चाहता है, उसे सड़कों पर घसीटा जा रहा है? और देश की युवा संपदा अंधविश्वास की आंधी में दौड़ में डूबने को तैयार है वह स्वागत पा रहा है। यहां मैं बोलूंगा तो फिर कहोगे कि बोलता है।
आज युवाओं का दर्द कौन जाने? देश के आकांओ को जुमले वाले भाषणों से ही फुर्सत ही नहीं।
भर्तियों के नाम पर वर्षों इंतजार कराया जाता है, परीक्षाएँ होती हैं लेकिन परिणाम आने में सालों लग जाते हैं। कभी भर्ती निरस्त, कभी पेपर लीक, कभी कोर्ट केस — यह सब मिलकर युवा के सपनों को चूर-चूर कर देते हैं। नौकरी मिलने के बाद भी निर्दोषों को फर्जीवाड़े की आड़ में हटाया जा रहा है। कोर्ट-कचहरी में लटकी ज़िंदगियाँ और अधूरे सपने — यही आज की सच्चाई है।
धार्मिक आयोजनों के भव्य प्रचार-प्रसार पर करोड़ों खर्च होते हैं। मंदिरों के शिलान्यास और उद्घाटन पर मीडिया की सुर्खियाँ छा जाती हैं, लेकिन मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी, हॉस्पिटल या सरकारी स्कूल खुलने की खबरें कब आईं? शिक्षा के मंदिर ध्वस्त हो रहे हैं। दो महीने तक बच्चों को किताबें न मिलने पर जब शिक्षक सवाल पूछते हैं तो उन्हें एपीओ कर दिया जाता है। सवाल उठाने पर सज़ा, और अंधभक्ति में डूबने पर इनाम — यही आज का पैमाना बना दिया गया है।
देखा जाए तो अग्निवीर योजना से युवाओं का भविष्य दाव पर लगा हुआ है।फौज और पुलिस जैसी नौकरियों को भी “अग्निवीर” योजना के नाम पर अस्थायी बना दिया गया। जिन युवाओं ने जीवनभर देश की सेवा का सपना देखा था, उनकी उम्मीदों को चार साल की ठेकेदारी में तब्दील कर दिया गया। यह केवल रोजगार का संकट नहीं, यह युवाओं के आत्मविश्वास और देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है।
सिस्टम का खोखलापन यहां देखिए हर भर्ती अदालत तक पहुँच रही है। जब तक कोर्ट की शरण न ली जाए, युवाओं को न्याय नहीं मिलता। और युवा चुप क्यों रहते हैं? क्योंकि आंदोलन करने पर उनका कैरियर चौपट कर दिया जाता है। यही कारण है कि आंदोलनकारी युवाओं पर लाठियाँ बरसाई जाती हैं, ताकि डर का माहौल बना रहे।
जिस राष्ट्र में युवा को रोजगार न मिले, वहाँ विकास केवल जुमलों में होता है। जिस समाज में युवाओं की आवाज दबा दी जाए, वहाँ क्रांति देर-सवेर निश्चित है। फूल-मालाओं से स्वागत केवल दिखावा है; सच्चा स्वागत तब होगा जब युवाओं को उनके अधिकार, उनकी मेहनत का फल और सुरक्षित भविष्य मिलेगा।
हम किसी पार्टी, किसी संगठन, किसी गुट के नहीं — हम युवाओं की आवाज हैं। निष्पक्ष पत्रकारिता यही कहती है कि सत्ता चाहे जिसकी भी हो, सवाल वही पूछे जाएंगे जो जनता के हित में हैं। आज का सबसे बड़ा सवाल है: क्या हम अपने युवाओं को अंधभक्त बनाना चाहते हैं या राष्ट्र निर्माता?
युवा देश की रीढ़ है। अगर उनकी उम्मीदें टूट गईं, तो देश का भविष्य भी खोखला हो जाएगा। सत्ता में बैठे लोग यह समझ लें — लाठी से युवाओं की आवाज दबाई जा सकती है, लेकिन उनकी चीखों को इतिहास दर्ज करता है।
आज वक्त आ गया है कि नौजवान उठ खड़ा हो, अपनी ताक़त को पहचाने और एक स्वर में कहे: “हमें रोजगार चाहिए, खोखले वादे नहीं।”