भाजपा मंडल मंडावर ने मनाया जननायक डॉ. किरोड़ी मीना का जन्मदिन

मरीजों को फल वितरण कर की सेवा, निर्गुण मंदिर में गौसेवा कर मांगी दीर्घायु की कामना।

मनोज खंडेलवाल
भीम प्रज्ञा न्यूज़.मंडावर।
भारतीय जनता पार्टी मंडल मंडावर ने सोमवार को राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री एवं जननायक डॉ. किरोड़ी लाल मीना का 75वां जन्मदिन जनसेवा और संस्कार के अद्वितीय संगम के रूप में मनाया। मंडल पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मंडावर पहुंचकर भर्ती मरीजों को फल वितरण किया और उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के साथ ही मंत्री के दीर्घायु जीवन की कामना की।इसके पश्चात कार्यकर्ता श्रद्धा भाव से शहर स्थित सिद्धपीठ निर्गुण मंदिर पहुंचे, जहां गौमाताओ को गुड़ और हरा चारा खिलाकर गौसेवा का पुण्य कार्य किया गया। मंदिर परिसर में “डॉ. किरोड़ीलाल मीना जिंदाबाद” के जयघोष से वातावरण गूंज उठा। कार्यकर्ताओं ने जननायक के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी सरलता, निष्ठा और जनता के प्रति अटूट समर्पण आज भी हर कार्यकर्ता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इस मौके पर भाजपा मंडल मंडावर के महामंत्री सोनू वशिष्ठ व नेमीचंद सैनी, उपाध्यक्ष श्रीकृष्ण मोहन शर्मा, किंगकोंग मीना, रोहिताश मीना, मंडल कार्यालय प्रभारी मुकेश साहू सहित महेशचंद गर्ग, सियाराम मीना, महेंद्र खड़ोडिया, बाबूलाल शर्मा, पूर्व पंचायत समिति सदस्य ओमप्रकाश बैरवा, देवेंद्र जांगिड़, अमित कुमार जांगिड़,राकेश जैन, भुल्ला मीना, सहित अनेक भाजपा कार्यकर्ता उपस्थित रहें। कार्यकर्ताओं ने कहा कि डॉ. किरोड़ी मीना केवल एक जनप्रतिनिधि नहीं, बल्कि न्याय और जनहित के प्रहरी हैं, जिन्होंने सदैव वंचित वर्ग के अधिकारों की आवाज़ बुलंद की है। उनकी नीतियों और सेवा भाव से प्रेरित होकर भाजपा कार्यकर्ता समाज के अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं को पहुँचाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं।

 

संपादकीय

“अंतिम पड़ाव का सच — जहां अहंकार मिट जाता है और सच्ची शांति दिखती है”

जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि इंसान जिस चीज के पीछे पूरी उम्र भागता है, वही चीजें उसके जीवन के अंतिम पड़ाव पर अर्थहीन लगने लगती हैं। धन, संपत्ति, पद, सम्मान, अहंकार, परिवार और रिश्ते—सब कुछ एक समय के बाद अपनी चमक खो देते हैं। जब सांसें धीमी पड़ने लगती हैं, तब एहसास होता है कि यह सब वैभव, यह सब दिखावा, बस एक अस्थायी माया थी, जिसे पाने की होड़ में हमने अपना सच्चा सुख, अपनापन और आत्मिक शांति खो दी। जीवन का यह विरोधाभास हमें सिखाता है कि जिस चीज को पाने के लिए हम अपना पूरा जीवन खपा देते हैं, वही अंत में निरर्थक लगती है। यहां मैं बोलूंगा तो फिर कहोगी कि बोलता है।

अहंकार शायद इंसान की सबसे बड़ी भूल है। यह उसे दूसरों से श्रेष्ठ होने का भ्रम देता है, पर जब जीवन की अंतिम घड़ी आती है, तो वही अहंकार सबसे पहले टूटता है। पद और प्रतिष्ठा के बल पर बना गर्व उस समय टिक नहीं पाता जब आत्मा अपनी सच्चाई से सामना करती है। उस क्षण में कोई ताज, कोई सिंहासन, कोई उपाधि साथ नहीं होती—साथ होती है केवल अपने कर्मों की स्मृतियाँ और मन की स्थिति। इसलिए समझदार व्यक्ति वही है जो अहंकार को जीते-जी त्याग दे, क्योंकि मृत्यु के द्वार पर अहंकार का कोई मूल्य नहीं।

जीवन की यात्रा में जो अदृश्य है, वही सबसे स्थायी है। हम अक्सर दिखने वाली चीजों—धन, गाड़ी, मकान, आभूषण—के पीछे भागते हैं, लेकिन प्रेम, करुणा, विनम्रता, सादगी और क्षमा जैसे मूल्य, जो दिखते नहीं, वही हमें भीतर से सम्पन्न बनाते हैं। यही वे गुण हैं जो हमारे जाने के बाद भी हमें जीवित रखते हैं, जो हमारी पहचान को अमर बना देते हैं। धन-संपत्ति तो एक दिन छिन जाती है, लेकिन एक सच्चे, प्रेमपूर्ण और शांत स्वभाव वाले व्यक्ति की छवि पीढ़ियों तक बनी रहती है।

रिश्ते भी जीवन की सबसे मूल्यवान पूँजी हैं। इंसान जब स्वस्थ और सक्षम होता है, तब रिश्तों की अहमियत नहीं समझता। लेकिन जब शरीर कमजोर होता है, जब मन थक जाता है, तब वही रिश्ते सबसे बड़ी ताकत बनकर खड़े होते हैं। जीवन के अंत में न पैसा सहारा देता है, न पद—सिर्फ स्नेह, अपनापन और दूसरों के दिल में आपकी जगह काम आती है। इसलिए जीते जी प्रेम बाँटिए, क्षमा कीजिए, लोगों से अच्छा व्यवहार रखिए, क्योंकि यही व्यवहार आपका असली धरोहर है।

सच्चा सुख भौतिक संपन्नता में नहीं, बल्कि आत्मिक तृप्ति में है। जिस व्यक्ति ने अपने भीतर संतोष को बसाया, वही सच्चा धनी है। जीवन का आनंद तब आता है जब हम पाने से अधिक बांटने में विश्वास करते हैं। जो व्यक्ति यह समझ ले कि वह खाली हाथ आया था और खाली हाथ जाएगा, वही सबसे मुक्त व्यक्ति है। इस समझ के साथ जीने वाला व्यक्ति कभी दूसरों से ईर्ष्या नहीं करता, कभी अहंकार में नहीं डूबता और हमेशा जीवन को सहजता से स्वीकार करता है।

जीवन के अंतिम क्षणों में जब व्यक्ति अपनी यात्रा को पीछे मुड़कर देखता है, तो उसे अहसास होता है कि असली महत्व उन क्षणों का था जो उसने प्रेम, सादगी और अपनापन के साथ जिए। वही पल उसकी असली पूँजी बन जाते हैं। शेष सब क्षणिक मृगतृष्णा साबित होती है।

इसलिए आज, जब हम जीवन की राह पर चल रहे हैं, तो यह समझना जरूरी है कि यह यात्रा बहुत छोटी है। जो मिला है, उसकी कद्र कीजिए। जो आपके पास हैं, उन्हें प्यार दीजिए। अपने कर्मों को इतना सुंदर बनाइए कि जब अंत समय आए, तो मन में कोई पछतावा न रहे।

क्योंकि अंत में न धन साथ जाएगा, न पद, न सम्मान। साथ जाएगी तो बस आपकी मुस्कान, आपका प्रेम, और आपकी आत्मा की शांति। यही जीवन का अंतिम सत्य है—जहां अहंकार मिट जाता है और शांति ही बचती है।

 

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