संपादकीय एडवोकेट हरेश पंवार
नवरात्रि का पर्व पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। जगह-जगह देवी दुर्गा की प्रतिमाएं सजी हैं, भजन-कीर्तन गूंज रहे हैं और भक्तजन मां की आराधना में लीन हैं। दुर्गा अष्टमी और नवमी पर तो विशेष रूप से कन्या पूजन का आयोजन होता है—जहां अबोध बालिकाओं के चरण पखारे जाते हैं, उन्हें देवी स्वरूपा मानकर भोजन कराया जाता है। यह परंपरा हमारी सनातन संस्कृति की महान धरोहर है, जो हमें सिखाती है कि नारी शक्ति ही सृष्टि की आधारशिला है। यह मैं बोलूंगा तो फिर कहोगे कि बोलता है।
लेकिन, इस आस्था और श्रद्धा के उत्सव के समानांतर एक कड़वी सच्चाई भी हमें झकझोरती है। वही समाज जहां देवी के चरण पूजे जाते हैं, वहीं दूसरी ओर अबोध बालिकाओं के साथ बलात्कार की अमानवीय घटनाएं सामने आती हैं। रिश्तों की आड़ में छिपे भेड़ियों द्वारा मासूम बेटियों की इज्ज़त लूट लेना, यह दिखाता है कि अपराध की जड़ें घर के भीतर तक फैली हुई हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या हमारी भक्ति केवल मंदिरों तक सीमित रह गई है? क्या देवी की मूर्तियों के आगे नमन करना ही नारी सम्मान का प्रमाण है, जबकि व्यवहार में महिलाओं को बराबरी और सुरक्षा न मिल रही हो?
आज दुर्गा पूजा महोत्सव को केवल धार्मिक अनुष्ठान न मानकर सामाजिक शिक्षा के रूप में देखने की आवश्यकता है। दुर्गा मां की आराधना का वास्तविक अर्थ तभी है जब हम नारी को देवी ही नहीं, इंसान मानकर बराबरी का दर्जा दें। जब घर से बाहर जाती हर बहन-बेटी यह महसूस करे कि वह सुरक्षित है। जब किसी छात्रा को स्कूल-कोचिंग जाने के रास्ते पर डर न सताए। जब किसी महिला कर्मचारी को ऑफिस में सम्मान मिले और वह उत्पीड़न का शिकार न बने। यही वह संकल्प है, जो इस पर्व को सार्थक बना सकता है।
यदि हम नवरात्रि में उपवास रखते हैं, दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और साथ ही महिलाओं पर अत्याचार देखते हुए चुप रहते हैं, तो यह पर्व केवल दिखावा और ढोंग बनकर रह जाएगा। असली पूजा वही है, जिसमें हम अपनी बेटियों के अधिकार और सम्मान की रक्षा करें। असली व्रत वही है, जिसमें हम नारी के साथ हर तरह का भेदभाव खत्म करने का संकल्प लें।
भारत की प्रगति और उन्नति का मार्ग नवरात्रि के पंडालों से नहीं, बल्कि नारी के सम्मान से होकर जाता है। जब बेटियों की शिक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित होगी, जब उन्हें स्वतंत्रता और अवसर मिलेंगे, तभी मां दुर्गा की आराधना सच्चे अर्थों में सफल होगी।
इसलिए इस नवरात्रि पर हमें केवल देवी की मूर्तियों के सामने दीप जलाने से आगे बढ़कर, समाज में फैले अंधविश्वास और अपराध के अंधकार को मिटाना होगा। यही हमारी आस्था का असली अर्थ है, यही हमारी संस्कृति की सच्ची साधना है।